Friday, September 12, 2008

विवाह सेवा संस्था में करें जीवन साथी की खोज

विवाह सेवा संस्था में करें जीवन साथी की खोज
________________________________________
cri


श्री रन थ्येन पेइचिंग की ऐसी सब से बड़ी संस्था जी चीन छन विवाह सेवा केंद्र के प्रधान हैं। हाल में वे देश के विभिन्न स्थलों के प्रमुख विवाह सेवा केंद्रों को इकट्ठा कर विवाह सेवा संघ की स्थापना करने में लगे रहे। श्री रन थ्येन ने कहा कि हाल के दो वर्षों में उन्होंने स्पष्ट रूप से महसूस किया कि चीन में विवाह सेवा का बाजार निरंतर विस्तृत हो रहा है। इसलिए देश में विवाह सेवा के मार्का स्थापित किया जाना चाहिए और एक मानक विवाह सेवा व्यवस्था की स्थापना की जानी चाहिए। उन के अनुसार, जी चीन छन विवाह सेवा केंद्र पेइचिंग की मशहूर विवाह सेवा संस्था है। हमें आशा है कि हमारी सेवा की गुणवत्ता तथा प्रबंध जाल विवाह सेवा के बाजार के विकास को प्रेरित कर सकेगा और इससे विवाह सेवा का एक मार्का बन सकेगा। मेरे विचार में यह एक बड़ा बाजार है। हम इसे मजबूत बनायेंगे और बड़ा करेंगे।
इधर के वर्षों में चीन में विवाह सेवा व्यवसाय खूब प्रचलित हुआ है। चीन में विवाह का परम्परागत तरीका बिचौलिये के जरिये लड़के व लड़की को मिलवाने का रहा है। कोई 20 वर्ष पहले, पेइचिंग महिला संघ के आह्वान पर चीन में प्रथम विवाह सेवा संस्था की स्थापना की गई। इस विवाह सेवा संस्था का कोई तय दफ्तर या विशेष कर्मचारी नहीं था। महिला संघ के कर्मचारी नियमित समय पर विवाह की उम्र वाले लड़कों व लड़कियों को पेइचिंग के एक पार्क में इकट्ठा कर नाच समारोह का आयोजन करते और नाचते-नाचते लड़के-लड़की एक-दूसरे से परिचित होते और उनमें से कुछ विवाह सूत्र में भी बंध जाते।
धीरे धीरे अधिक से अधिक लड़के-लड़कियां ऐसी विवाह सेवा संस्था में आने लगे और चीन में इस तरह की संस्थाओं की संख्या भी बढ़ने लगी। आज पूरे चीन में औपचारिक रूप से पंजीकृत ऐसी संस्थाओं की संख्या पांच हजार से ज्यादा है। इधर इन संस्थाओं में कुछ परिवर्तन भी आये हैं। अब वे न केवल लोगों को जीवन साथी खोजने में मदद दे रही हैं, प्रेम व विवाह जीवन संबंधी लोगों की समस्याओं के समाधान में भी मदद कर रही हैं।
चीन में हर जगह ऐसी विवाह सेवा संस्थाएं मौजूद हैं। इनका व्यापार आज बहुत गर्म है। अकेले पेइचिंग में 35 से 50 वर्ष की उम्र वाले अविवाहित पुरुषों या महिलाओं की संख्या 5 लाख से ज्यादा है। ये लोग ऐसी संस्थाओं में अपना पंजीकरण करा सकते हैं और इनके सदस्य बन सकते हैं। ये संस्थाएं उन की मांग के अनुसार अपने पंजीकृत सदस्यों में उचित लोगों का उनसे परिचय कराती हैं।एक जानकारी के अनुसार, पेइचिंग की जी चीन छन जैसी संस्था में लाखों लोग पंजीकृत हैं।
उपभोक्ताओं की मांग के अनुरूप विवाह सेवा संस्थाएं उन्हें विभिन्न सेवाएं प्रदान करती हैं। ह नान प्रांत का जडं च्यो बुद्धजीवी विवाह सेवा केंद्र विशेष रूप से बुद्धजीवियों की सेवा करता है। इस केंद्र की सुश्री ली च्येन ने बताया, हमारा स्पष्ट लक्ष्य है, समाज के बुद्धजीवियों की सेवा। अनेक बुद्धिजीवी बहुत व्यस्त रहने के कारण अविवाहित हैं। इनमें से कुछ लोगों के पास जीवन साथी ढूंढ़ने का समय ही नहीं है। इसलिए, हम उन की मदद करना चाहते हैं।
हम ने ध्यान दिया कि इन विवाह सेवा संस्थाओं की कर्मचारी आम तौर पर अधेड़ महिलाएं हैं।
उत्तर-पूर्वी चीन के दा ल्येन शहर के सौभाग्य नामक विवाह सेवा केंद्र में पिछले 10 वर्षों से काम करती आईं सुश्री सुंग ल्येई श्यांग ने बताया कि वे विभिन्न किस्मों के लोगों से मिल चुकी है। अक्सर लड़कियां कहती हैं कि वे धनी पुरुष से विवाह करना चाहती हैं तो बड़ी उम्र वाले पुरुष युवा व सुन्दर लड़की चाहते हैं। सुश्री सुंग ल्येई श्यांग उन्हें समझाती हैं कि सुन्दरता और पैसा ही विवाह के लिए सब कुछ नहीं होता। उन्होंने कहा कि कुछ युवा विवाह के बाद भी अक्सर उन से सुझाव लेने आते हैं। उन के अनुसार, मैं उन की यथार्थ स्थिति का विश्लेषण करती हूं। पतियों को बताती हूं कि बच्चे का जन्म पत्नी का योगदान ही है, इसलिए, पति को गर्भवती पत्नी के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए।
चीन में हर वर्ष कितने लोग विवाह सेवा संस्थाओं के जरिए विवाहसूत्र में बंधते हैं, इसकी ठोस संख्या अब तक ज्ञाता नहीं हो सकी है। खैर दा ल्येन के कर्मचारी श्री शीन थ्येन शींग ने बताया कि वे जी श्यांग व्येई विवाह सेवा केंद्र के जरिए अपनी पत्नी की खोज कर पाये। उन्होंने बताया, मैंने जी श्यांग व्येन विवाह सेवा संस्था के जरिए अपनी अभिलाषा पूरी की। मेरी पत्नी दा ल्येन की निवासी हैं, और एक कंपनी में लेखा-जोखा करती हैं। मैं उन्हें लेकर बहुत संतुष्ट हूं और वे भी हैं।
27 वर्षीय ल्वू पींग ने भी एक विवाह सेवा संस्था के जरिए अपना जीवन साथी खोजा। श्री ल्वू पींग पेइचिंग की एक बड़ी कंपनी के कर्मचारी हैं। उनकी मानसिक आमदनी 20 हजार य्वान है। गत वर्ष, उन्होंने पेइचिंग के एक विवाह सेवा केंद्र को अपनी निजी जानकारी दी और कुछ समय पहले, इस विवाह सेवा केंद्र की मदद से एक अच्छी लड़की खोज सके। श्री ल्वू पींग ने कहा, मैं बहुत व्यस्त रहता हूं। विवाह सेवा संस्था ही मेरी इस समस्या का हल कर सकती थी क्योंकि उनके पास ऐसी अनेक अच्छी लड़कियां थीं, जो मेरे अनुकूल थीं। मैं ने उन में से एक लड़की को चुना, जो मेरे लिए सब से उचित थी।
चीन में विवाह की समस्या पर अनुसंधान करने वाले विशेषज्ञों के अनुसार, जबरदस्त प्रतिस्पर्द्धा और भारी दबाव के चलते श्री ल्वू पींग जैसे कई कंपनी कर्मचारियों का दैनिक जीवन बहुत व्यस्त रहता है। उन के पास अपने जीवन साथी की खोज करने का समय नहीं रहता, इसलिए, उन में से अनेक लोग विवाह सेवा संस्था से मदद लेने का प्रयास कर रहे हैं।
पर चीन के विवाह सेवा व्यवसाय में कुछ अनुचित स्थितियां भी हैं। मिसाल के लिए, कुछ छोटी विवाह सेवा संस्थाओं की परिचय फीस बहुत ऊंची है और वे उपभोक्ताओं को धोखा भी देती हैं। विवाह सेवा व्यवसाय का मापदंड बने इससे पहले, चीनी नागरिक विभागों ने विशेष रूप से एक व्यावसायिक कमेटी की स्थापना की है। इसने विवाह सेवा की यथार्थ नियमावली बनाई है और यह विवाह सेवा संस्थाओं के कर्मचारियों को प्रशिक्षित भी करती है तथा लोगों को बेहतर विवाह सेवा संस्थाओं का परिचय देती है। हमें विश्वास है कि भविष्य में चीन के विवाह सेवा बाजार का मापदंड स्थापित हो सकेगा और इस का व्यावहारिक विकास हो पाएगा।
Ï×æüÍü ÅþSÅ ×ð´ ÎæÙ ÂÚ •¤Ú çÚØæØÌ
â×æÁ •¤ËØæ‡æ âÚ•¤æÚ •¤è ×êÜÖêÌ çÁ{×ðÎæÚè ãñÐ Ï×æüÍü ß Ïæç×ü•¤ ÅþSÅ âÚ•¤æÚ •¤è §â çÁ{×ðÎæÚè •¤æð •¤× •¤ÚÌð ãñ´Ð §âçÜ° §Ù ÅþSÅæð´ •¤æð •¤Ú çÚØæØÌð´ Îè ÁæÌè ãñ¢Ð Âêßü çÙÏæüçÚÌ ß ƒææðçáÌ Šæ×æüÍü •¤æØôZ ×ð¢ çÙßðàæ •¤è ÁæÙð ßæÜè ¥æØ ÂÚ ¥æØ•¤Ú ÀêÅ ç×ÜÌè ãñÐ ÅþSÅ •ð¤ ÌãÌ Ú¹è »§ü â¢Âç}æ ÂÚ Öè â¢Âç}æ •¤Ú Ùãè´ Ü»Ìæ ãñÐ ¥æØ•¤Ú •¤è ÏæÚæ 80Áè Øæ 80ÁèÁè° •ð¤ ÌãÌ ÎæÙ ÎðÙð ßæÜô´ •¤æð ¥æØ•¤Ú ÂÚ •¤ÅæñÌè •¤æ ÜæÖ ç×ÜÌæ ãñÐ •é¤àæÜ ß Õéçf×æÙ •¤Ú çÙØæðÁ•¤ •¤Ú ¥Âߢ¿Ù •ð¤ çÜ° ÅþSÅæð´ •¤æ §SÌð×æÜ •¤ÚÌð ãñ´Ð §â ÂÚ¤çÙØ¢˜æ‡æ •ð¤ çÜ° •¤§ü ©ÂæØ ç•¤° »° ãñ¢Ð çÁââð â¢Õ¢çÏÌ çÙØ× ÁçÅÜ ãæð »° ãñ¢Ð
ÅþSÅ •¤è ÂçÚÖæáæ vØæ ãñ?
Õ¢Õ§ü ÂçyÜ•¤ ÅþSÅ •¤è ÏæÚæ 2 (13) •ð¤ ¥ÙéâæÚ ÂçyÜ•¤ ÅþSÅ Ïæç×ü•¤ Øæ Ï×æüÍü ©Î÷ ÎðàØæð¢ Øæ ÎæðÙæð´ •ð¤ çÜ° °•¤ Ú¿Ùæˆ×•¤ ÅþSÅ ãñ çÁâ×ð´ ×¢çÎÚ, ×Æ, ßvȤ, ¿¿ü, ÂýæÍüÙæ-ƒæÚ Øæ ¥‹Ø Ïæç×ü•¤ ÂêÁæ SÍÜ àææç×Ü ãñ´Ð Øã âæðâæØÅè ÚçÁSÅþðàæÙ °vÅ, 1860 •ð¤ ÌãÌ Ïæç×ü•¤ Øæ Ï×æüÍü ©Î÷ ÎðàØæð´ •ð¤ çÜ° »çÆÌ °•¤ â×æÁ ãñÐ
»ÚèÕ •¤æð çàæÿææ ß ç¿ç•¤ˆâæ Áñâè ÚæãÌ ÂýÎæÙ •¤ÚÙæ Ïæç×ü•¤ ©Î÷ ÎðàØæð¢ ×ð´ àææç×Ü ãñÐ ©Î÷ ÎðàØæð´ ×ð´ ÂÚæð•¤æÚ •¤è ÖæßÙæ ãæðÙè ¿æçã°Ð ÎêâÚð àæyÎæð¢ ×ð´ ÜæÖæÍèü mæÚæ 畤âè ÜæÖ Øæ Îæß𠕤è ×梻 Ùãè¢ •¤è ÁæÙè ¿æçã°Ð §â ÌÚã •ð¤ 畤âè ©Î÷ ÎðàØ âð çÙÁè ÜæÖ Ùãè¢ ãæðÙæ ¿æçã°Ð ÜæÖæÍèü ¥æ× ÁÙÌæ ãæðÙæ ¿æçã°Ð ãæÜæ¢ç•¤ §Ù àæÌæðZ •¤æð ÂêÚæ •¤ÚÙæ ÕãéÌ •¤çÆÙ ãñ §âçÜ° ØçÎ â×æÁ •ð¤ 畤âè ß»ü •¤æð Üæzæ Âã颿æÙð •¤æ ©Î÷ ÎðàØ ãæð Ìæð ßã ÂØæü# ãñÐ
©ÎæãÚ‡æ •ð¤ çÜ° çã¢Îê â×æÁ •ð¤ ÜæÖ •ð¤ çÜ° ÕÙæØæ »Øæ ÅþSÅ ÀêÅ •¤è Âæ˜æÌæ Ú¹Ìæ ãñ, vØæð´ç•¤ çã¢Îê â×æÁ Ù Ìæ𠕤æð§ü Ïæç×ü•¤ â×éÎæØ ãñ ¥æñÚ Ù ãè ÏæÚæ 13 (1Õè) •ð¤ ¥ÙéâæÚ ÁæçÌ •ð¤ ÎæØÚð ×ð´ ¥æÌæ ãñÐ ÎêâÚè ÌÚȤ »éÜæ× ×æðçãçÎÙ ÅþSÅ ÕÙæ× âè¥æ§üÅè •ð¤ ×æ×Üð ×ð´ ÅþSÅ •¤æ »ÆÙ ×éwØ M¤Â âð çß™ææÙ ß Âýõlô绕¤è •¤æð Õɸæßæ ÎðÙð ß ×éâçÜ× ÕéçhÁèßè ß»ü ×ð´ ×éâçÜ× Ï×üçß™ææÙ •¤æð Õɸæßæ ÎðÙð •ð¤ çÜ° 畤Øæ »Øæ ÍæÐ çß™ææÙ ß Âýæñlæð绕¤è â¢Õ¢Ïè ©“æ ¥ŠØØÙ •ð¤ çÜ° ×éâçÜ× çßmæÙæð´ •¤æð çß}æèØ âãæØÌæ Îè »§üÐ •¤æðÅü Ù𠕤ãæ 畤 ÅþSÅ •ð¤ ©Î÷ ÎðàØ âð Øã SÂC ãñ 畤 Øã °•¤ Ïæç×ü•¤ ÅþSÅ ãñ çÁ╤è SÍæÂÙæ ×éâçÜ× â×éÎæØ •ð¤ ÜæÖ •ð¤ çÜ° •¤è »§ü ãñÐ
°•¤ ÁÙßÚè, 1962 •¤ô Øæ §â•ð¤ ÕæΠ畤âè ¹æâ Ïæç×ü•¤ â×éÎæØ Øæ ÁæçÌ Øæ §âð SÍæçÂÌ •¤ÚÙð ßæÜð ÃØçvÌ Øæ ©â•ð¤ çÚàÌðÎæÚæð´ •¤ô ÜæÖ Âã¢é¿æÙð •ð¤ ©Î÷ÎðàØ âð ÅþSÅ •¤è SÍæÂÙæ •¤ÚÙð ÂÚ Úô•¤ Ü»æ Îè »§üÐ ãæÜæ¢ç•¤ ¥Ùéâêç¿Ì ÁæçÌ, çÂÀǸæ ß»ü, ¥Ùéâêç¿Ì ÁÙÁæçÌ, ×çãÜæ Øæ Õ“ææð´ •ð¤ ÜæÖ •ð¤ çÜ° »çÆÌ ÅþSÅ ÂÚ Øã çÙØ× Üæ»ê Ùãè´ ãæðÌæ ãñÐ Ï×æüÍü Øæ Ïæç×ü•¤ ÅþSÅ ¥æØ•¤Ú ¥çÏçÙØ× •¤è ÏæÚæ 11 âð 13 •ð ÂýæßÏæÙæð´ âð çÙØ¢ç˜æÌ ãæðÌæ ãñÐ
Îðàæ •ð¤ ÕæãÚ Ï×æüÍü
ÅþSÅ •¤è ¥æØ •¤æð ÌÖè Ì•¤ •¤Ú ÀêÅ ç×ÜÌè ãñ ÁÕ Ì•¤ â¢Õh ßáü •ð¤ ÎæñÚæÙ Îðàæ ×ð´ ãè §â•ð¤ ©Î÷ ÎðàØô´ •¤æð ÂêÚæ 畤Øæ »Øæ ãñÐ §â•ð¤ Îæð ¥ÂßæÎ ãñÑ
1. °•¤ ¥ÂýñÜ, 1952 •¤æð Øæ §â•ð¤ ÕæÎ ¥¢ÌÚÚæC þèØ •¤ËØæ‡æ •¤æð Õɸæßæ ÎðÙð •ð¤ çÜ° SÍæçÂÌ ÅþSÅ çÁâ×ð´ ÖæÚÌ •¤è L¤ç¿ §âçÜ° ãæð 畤 ÅþSÅ •¤æð Âýæ# ÜæÖ •¤æ ©ÂØæð» Îðàæ •ð¤ ÕæãÚ ç•¤Øæ Áæ°Ð
2. °•¤ ¥ÂýñÜ, 1952 âð ÂãÜð SÍæçÂÌ ÅþSÅ çÁâð Âýæ# ãé§ü ¥æØ •¤æ ©ÂØæð» Îðàæ •ð¤ ÕæãÚ ãæðÐ
¥æ¢çà敤 M¤Â âð Ï×æüÍü
ÏæÚæ 11(1Õè) •ð¤ â¢ÎÖü ×ð´,
1. ØçΠ畤âè Ï×æüÍü ÅþSÅ •ð¤ Âæâ ¥æ¢çà敤 Ï×æüÍü ©Î÷ ÎðàØæð´ •ð¤ çÜ° •¤æð§ü â¢Âç}æ ãæð ¥õÚ §â ÅþSÅ •¤è SÍæÂÙæ °•¤ ¥ÂýñÜ, 1962 •¤æð Øæ §â•ð¤ ÕæÎ •¤è »§ü ãñ Ìæð ÅþSÅ •¤ô ãé§ü ¥æØ ÂÚ ç•¤âè ÌÚã •¤è ¥æØ•¤Ú ÀêÅ Ùãè´ ç×Üð»èÐ
2. °•¤ ¥ÂýñÜ, 1962 âð ÂãÜð SÍæçÂÌ ÅþSÅæð´ ÂÚ Ï×æüÍü ©Î÷ ÎðàØæð´ •ð¤ çÜ° Ú¹è »§ü â¢Â¢çÌ âð Âýæ# ¥æØ •ð¤ ×æ×Üð ×ð´ ßãè çÙØ× Üæ»ê ãæðÌð ãñ¢, Áæð Ï×æüÍü Øæ Ïæç×ü•¤ ©Î÷ ÎðàØæð´ •ð¤ çÜ° SÍæçÂÌ ÅþSÅ •ð¤ ×æ×Üð ×ð´ Üæ»ê ãæðÌð ãñ¢Ð
ÅþSÅ •¤æ ¢Á蕤ڇæ
°•¤ ¥ÂýñÜ, 1973 âð ÂãÜð Ì•¤ çÕÙæ 畤âè ¥æñ¿æçÚ•¤ ×âæñÎæ •ð¤ ÅþSÅ »çÆÌ ç•¤Øæ Áæ ╤Ìæ ÍæÐ ÏæÚæ 12° •ð çÙØ× 17° •ð¤ âæÍ ÂɸÙð ÂÚ ÅþSÅ •¤æð SÍæçÂÌ •¤ÚÙð ßæÜæ §¢SÅþå×ð´Å Øæ §âð SÍæçÂÌ •¤ÚÙð ßæÜæ ×âæñÎæ ¥ÂçÚãæØü ãñÐ
Ù° SÍæçÂÌ ÅþSÅ •¤æð SÍæÂÙæ •¤è ÌæÚè¹ âð °•¤ ßáü •¤è ¥ßçÏ ÂêÚè ãæðÙð âð ÂãÜð ¢Áè•¤Ú‡æ •ð¤ çÜ° ¥æØ•¤Ú ¥æØévÌ •ð¤ Âæâ ¥æßðÎÙ (Ȥæ×ü-10Õè) •¤ÚÙæ ÂǸÌæ ãñР¢Á蕤ڇæ Sß蕤æÚ •¤ÚÙð Øæ ¥Sß蕤æÚ •¤ÚÙð •ð¤ â¢Õ¢Ï ×ð´ ¥æØ•¤Ú ¥æØévÌ •¤æð Àã ×ãèÙð •ð¤ ÖèÌÚ Èñ¤âÜæ •¤ÚÙæ ÂǸÌæ ãñÐ ©ç¿Ì •¤æÚ‡ææð´ •¤è ßÁã âð çßÜ¢Õ âð ¥æßðÎÙ •¤ÚÙð •ð¤ çÜ° ×æȤè Îè Áæ ╤Ìè ãñР¢Áè•¤Ú‡æ •¤è ¥Ùé×çÌ ÎðÙð Øæ Ùßè•¤Ú‡æ •ð¤ ÎæñÚæÙ çßÖæ» ÅþSÅ •ð¤ ©Î÷ ÎðàØæð´ •¤è Âý×æç‡æ•¤Ìæ ß Âýæ# ¥æØ •ð¤ â×éç¿Ì ©ÂØæð» •¤è ÁæÙ•¤æÚè Âýæ# •¤ÚÌæ ãñÐ
ÅþSÅ •¤æ ¢Á蕤ڇæ âæðâæØÅèÁ ÚçÁSÅþðàæÙ °vÅ, 1860 Øæ Õ¢Õ§ü ÂçyÜ•¤ ÅþSÅ °vÅ,1950 Áñâð Üæð•¤Ü ÂçyÜ•¤ ÅþSÅ ¥çŠæçÙØ×æð´ •ð¤ ÌãÌ ç•¤Øæ Áæ ╤Ìæ ãñÐ
âæðâæØÅèÁ ÚçÁSÅþðàæÙ °vÅ,1860 •ð´¤ÎýèØ •¤æÙêÙ ãñ Áæð ÂêÚð Îðàæ ×ð´ Üæ»ê ãæðÌæ ãñÐ âæðâæØÅèÁ ÚçÁSÅþðàæÙ °vÅ •ð¤ ÌãÌ ç•¤Øæ »Øæ •¤æð§ü ¢Á蕤ڇæ Öè SßÌÑ Üæð•¤Ü ÂçyÜ•¤ ÅþSÅ °vÅ •ð¤ ÌãÌ SÍæÙæ¢ÌçÚÌ ãæð ÁæÌæ ãñÐ ãæÜæ¢ç•¤, âæðâæØÅèÁ ÚçÁSÅþðàæÙ °vÅ •ð¤ ÌãÌ Â¢Áè•¤Ú‡æ ¥çÙßæØü Ùãè´ ãñÐ
¢Áè•¤Ú‡æ •¤è ¥Ùé×çÌ çßçÖ‹Ù àæÌæðü¢ ×ð´ âð °•¤ àæÌü ãæð ╤Ìè ãñ Üð畤٠¥æØ•¤Ú âð ÀêÅ •ð¤ çÜ° Øã °•¤×æ˜æ àæÌü Ùãè´ ãñÐ Ï×æüÍü ¥æØévÌ •ð¤ Øãæ¢ Â¢Áè•¤Ú‡æ •¤ÚæÙð •ð¤ ÕæÎ, °•¤ ¥æßðÎÙ ¥æØ•¤Ú çßÖæ» •ð¤ Âæâ ÖðÁæ Áæ ╤Ìæ ãñ, Ìæ畤 ÎæÙÎæÌæ •¤ô ÏæÚæ 80Áè Øæ 80ÁèÁè° •ð¤ ÌãÌ çΰ »° ÎæÙ ÂÚ ¥æØ•¤Ú •¤ÅõÌè •¤æ ÜæÖ çÎØæ Áæ â•ð¤Ð
पंजाब के गांव में चेरी ब्लेयर
की मदद से स्कूल खुलेगा

चंडीगढ़, 12 जनवरी (आईएएनएस)। ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की पत्नी चेरी ब्लेयर के प्रयासों से पंजाब के धिलवान गांव में एक आदर्श विद्यालय स्थापित किया जाएगा। इसके लिए चेरी ने पंजाब सरकार के साथ एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किया है। विद्यालय की स्थापना के लिए चेरी ने लंदन के 'लुंबा ट्रस्ट' की ओर से इस समझौते पर हस्ताक्षर किया है।

खास बात यह है कि लंदन स्थित लुंबा ट्रस्ट के संचालक राज लुंबा का कपूरथला के इस गांव के साथ गहरा रिश्ता है। राज ने बताया कि इस ट्रस्ट की स्थापना के लिए उन्हें उनकी मां से प्रेरणा मिली थी, जो कम उम्र में ही विधवा हो गई थी। इस ट्रस्ट की मदद से भारत, नेपाल, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, बांग्लादेश, युगांडा और केन्या में गरीबों के कल्याणार्थ अनेक योजनाएं चलाई जाती हैं।

इस ट्रस्ट की अध्यक्ष चेरी ब्लेयर हैं। विद्यालय की स्थापना के लिए चेरी ने मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के साथ एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किया है। लुंबा ट्रस्ट के अलावा पंजाब सरकार भी पांच लाख रुपए विद्यालय की स्थापना पर खर्च करेगी। चेरी इन दिनों पंजाब दौरे पर हैं। लुंबा के पिता की याद में बनने जा रहे इस विद्यालय का नाम भी उनके नाम पर 'श्री जिगरी लाल लुंबा' रखा जाएगा।

No comments: