Monday, September 15, 2008

१८५७ आज भी होना चाहिए

अभी सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आयी है और फिर राजनीति के अखाडे सजने लगे हैं। बजाय रिपोर्ट के तथ्यों को वस्तुगत रूप में ग्रहण करने के, तथा राष्ट्रीय विकास की जरूरतों के रूप में उन पर विचार करने के, उन पर बयानबाजी की जा रही है और चुनावी मुद्दों के लिये लगाम कसी जा रही है। किसी भी राष्ट्र के विकास की अवधारणा में सभी जाति, धर्म, वर्ण और वर्गों को शामिल किया जाना जरूरी है। सभी का योगदान जरूरी है। किसी भी समाज का किसी राष्ट्र का निर्माण एक जाति या सम्प्रदाय के बलबूते नहीं होता। यह इतिहास को झुठलाना होता है। १८५७ की क्र्ांति से पहले ही हिन्दुस्तान के किसान और कारीगर तबाह हो चुके थे। कारीगर भूखों मर रहे थे और मजदूर बन कर मिट्टी के मोल अपना श्रम बेच रहे थे। किसान जष्मीन के नये बंदोबस्तों में देसी जमींदार, ताल्लुकेदार और अंग्रेज शासकों के बीच पिस रहे थे और इधर उधर भाग रहे थे। फौज में भर्ती हो रहे थे। शहरों में आकर मजदूर बन रहे थे, या वतन से दूर जाकर मजदूरी कर रहे थे। १८५७ की क्राांति के बाद अंग्रेजों के बदले का शिकार मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय ही हुआ। गालिब के शब्दों में कि दिल्ली उजड गई और सिर्फ एक हजार मुसलमान ही वहां बच पाये। यह अलग बात है कि पहला सबक जो अंग्रेजों ने फिर लिया वह हिन्दू-मुस्लिम एकता को तोडना था जो उनकी राह में सबसे बडा रोडा थी। बाद में लुटे-पिटे मुस्लिम समुदाय पर उन्हने हाथ रखा। वे संख्या में भी कम थे इसलिये उन्हें संभालना आसान था। इसके बावजूद बीसवीं सदी में चल रहे राष्ट्रीय आन्दोलन में हिन्दू-मुस्लिम समुदाय का बराबर योगदान रहा। निश्चित रूप से अंतिम चरण में जिन्ना जैसा कट्टर राष्ट्रवादी नेता मुख्यधारा से अलग हो गया और पाकिस्तान के निर्माता के रूप में इतिहास पुरूष हुआ। इस राजनीति के विपरीत सर सैय्यद अहमद खां जैसे लोगों ने ही मुख्य धारा से अलग थलग जा पडे, लुटे-पिटे मुस्लिम समुदाय की शिक्षा और सांस्कृतिक उत्थान के लिये पहल की और उनके सशक्तीकरण के लिए प्रयास किये। इसके बावजूद आज भी मुस्लिम समाज, अनुसूचित जाति, जनजाति के दलित समाज के समान ही शिक्षा और व्यवसाय में बहुत पीछे है। आर्थिक विपन्नता कहीं न कहीं सांस्कृतिक पिछडेपन से, संकीर्णतावाद से जुड जाती है। विपन्न समाज पर धार्मिक नेतृत्व हावी हो जाता है। आर्थिक विपन्नता और असमानता से उपजी सामाजिक कुंठा अपराध और आतंक का रास्ता भी तलाशती है। जहां एक ओर दलित और पिछडे समाजों को मुख्य धारा में लाने के लिये चर्चा होती रही, प्रयास होते रहे और नीति-सिद्धान्त बनने की प्रकरि्या चलती रही, वहीं मुस्लिम समाज को नजष्रअंदाज किया जाता रहा। उनकी आर्थिक-सामाजिक और सांस्कृतिक स्थितियों में बदलाव लाकर उसके सकारात्मक परिणामों की उपेक्षा की जाती रही। उन्हें केवल राजनीति के मोहरे के रूप में, वोट बैंक के रूप में समझा जाता रहा। जो प्रयास हुए उनमें भी सद्भावना और नीयत कम थी, शोरगुल ज्यादा था, सियासत ज्यादा थी। ब्रिटिश राज में एक ओर भारतीय वर्णव्यवस्था के तले पिसते हुए दलित समाज की स्थितियों की ओर अंग्रेजी राज का ध्यान गया। महात्मा ज्योतिबा फुले द्वारा दलित समाज के शिक्षा के प्रचार प्रसार और इस हेतु उनके द्वारा स्थापित सत्य शोधक समाज की गतिविधियों को अंग्रेजों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहायता दी जो उनके बीच सामाजिक जागृति का एक माध्यम बनी। इसी की अगली कडी के रूप में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर थे जो दलितों के लिये सामाजिक न्याय और समानता के संघर्ष के कारण युग पुरूष हुए। मुस्लिम समुदाय के बीच अलीगढ आन्दोलन ही था जिसने इस रूप में प्रयास किया। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में इस ओर पहला प्रयास ब्रिटिश राज के प्रशासक एलिफिन्स्टन ने एक व्यापक सर्वेक्षण के माध्यम से किया और दलित तथा पिछडे मुस्लिम समुदाय के सशक्तीकरण के लिये प्रयास करने की आवश्यकता पर बल पर दिया था। पहली बार १९३५ में सरकारी नीति के अंतर्गत दलित हिन्दू और दलित मुस्लिम को विशेष सुविधाएं देने के लिये प्रावधान किया गया। यह हमारी वर्णवादी व्यवस्था का कमाल ही कहा जायेगा जहां दलित समाज हमेशा दलित ही रहता है। चाहे वह कितना ही धर्म बदल ले। एक धर्म पुस्तक-एक भाईचारे वाले धर्म का चोगा भी पहन ले, उसकी जन्मना स्थितियां उसे जस का तस रखती हैं। इसीलिये दलित मुस्लिम या दलित ईसाई जैसे वर्ग आज भी हमारी सामाजिक चिन्ताओं में हैं। एक साथ वे नमाजष् तो पढ सकते हैं, गिरजे में साथ बाइबिल की आयतें तो पढ सकते हैं लेकिन रोटी-बेटी का संबंध नहीं हो सकता। केवल और केवल आर्थिक सशक्तीकरण उन्हें राष्ट्रीय मुख्य धारा में ला सकता है, उन्हें सामाजिक न्याय और समानता के अधिकार प्रदान कर सकता है। आर्थिक सशक्तीकरण का रास्ता शिक्षा के दरवाजे से होकर निकलता है। गरीबी के साथ सामाजिक पिछडेपन का चोली-दामन का साथ है। इससे पहले इन्दिरा गांधी के शासनकाल में अनुसूचित जाति-जनजाति तथा पिछडे हुए मुस्लिम समाज की आर्थिक-सामाजिक स्थितियों के अध्ययन के लिये, दस सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया था। १९८३ में कमेटी के अध्यक्ष डॉ. गोपाल सिंह की रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया कि अल्पसंख्यक समाज में लगातार भेदभावपूर्ण व्यवहार के प्रति कुंठा व्याप्त है और इसे पूरी तरह से निकालने के प्रयास होने चाहिये यदि हम चाहते हैं कि राष्ट्र की मुख्य धारा में उनका स्थान हो। कोई भी समाज जो अलग-थलग कटा रहेगा, विपन्नता और अशिक्षा के वातावरण में रहेगा, उसके रूप में एक बडे मानव संसाधन से राष्ट्र को भी वंचित रहना पडेगा। ये भेदभावपूर्ण और असंतोष पैदा करने वाली स्थितियां उस समाज के विकास को तो बाधित करती हैं साथ ही राष्ट्र के एक बडे भू-भाग को भी खोने का खतरा उठाती हैं जहां उस समूह का भौगोलिक रूप से प्रभाव है। पिछले कुछ दशकों से साम्प्रदायिक दंगों में हमेशा एक तयशुदा नमूना नजष्र आया है जहां अल्पसंख्यक समुदाय के आर्थिक आधार पर चोट की गई है। सर्वाधिक ताजष उदाहरण २००२ में गुजरात के मुस्लिम नरसंहार का है जहां चुन-चुन कर उनके व्यापारिक प्रतिष्ठानों को नष्ट किया गया, जीविकोपार्जन के साधनों को नष्ट किया गया। आज भी बडी संख्या में वहां लोग बेघरबार हैं और जाहिर है कि रोजगार, शिक्षा और व्यवसाय जैसी जीवन की धाराओं से वंचित हैं। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार सबसे निर्धन वर्ग का प्रतिशत यदि अनुसूचित जाति/ जनजाति में ३५ है तो मुस्लिम समाज में यह ३१ प्रतिशत है (जो सामान्य हिन्दू वर्ग के लिये ८.९ प्रतिशत है। शहरों में यह निर्धनता का प्रतिशत बढकर ३८.४ हो जाता है; अनुसूचित जाति जनजाति के ३६.४ प्रतिशत से २ प्रतिशत ज्यादा) शिक्षा के स्तर में भी स्कूल जाने वाले लडके, लडकियों का प्रतिशत अनु. जाति/जनजाति से कम है। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट इस भ्रम को भी तोडती है कि अधिकांश मुस्लिम बच्चे मदरसे में शिक्षा प्राप्त करते हैं (एक प्रचलित धारणा के अंतर्गत कि मदरसे में आतंकवादी पलते और बनते हैं)। रिपोर्ट के अनुसार केवल ३-४ प्रतिशत बच्चे मदरसे में शिक्षा प्राप्त करते हैं और उसके पीछे भी मुख्य कारण आर्थिक है जहां मां-बाप सामान्य स्कूलों का खर्च नहीं उठा पाते। सामान्यतः हिन्दू वर्ग में १५.३ प्रतिशत स्नातकों की तुलना में जहां मुस्लिम स्नातकों का प्रतिशत ३.४ है। वहीं अनुसूचित जाति/जनजाति का २.२ है। सरकारी नौकरियों में अल्पसंख्यक समुदाय की उपस्थिति कुल प्रतिशत ४.९ है जो अन्य समुदायों की तुलना में बहुत कम है और केवल दलित वर्ग के समकक्ष है। जब तक समाज के सभी हिस्सों का सर्वांगीण विकास नहीं होगा, तब तक सही अर्थों में राष्ट्रीय विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। जरूरी है कि विकास के इन मुद्दों पर राजनीति न की जाय और बिना ढोल नगाडों के, इन्हें विकास के एजेन्डे में प्राथमिकता दी जाय। शिक्षा के क्षेत्रा में दलित और पिछडे वर्ग के समान इन्हें आरक्षण की सुविधा मिले। नौकरियों में इन्हें समान अवसर मिलें। सामाजिक समरसता के वातावरण का निर्माण कर उनके बीच व्याप्त भय और असुरक्षा को दूर करके ही एक बडे समुदाय को मुख्य धारा में लाया जा सकता
है।http://www.khabarexpress.com/Vartmaan-Sahitya-Magzine-1-3-37.html

Saturday, September 13, 2008

प्रिन्स ट्रस्ट

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Friday, September 12, 2008

सोच कर देखो…

सोच कर देखो…




ट्रस्ट के संस्थापक श्री सुदीप महात्मा जी के उदगार -

आजकल बहुत सारे ट्रस्ट तथा धार्मिक संस्थाएँ सामाजिक कार्यों में लगी हुई है और समाज का कल्याण कर रही है, हो सकता है उनमें कुछ स्वार्थ के हित के लीये भी कार्यरत हों पर इसका मतलब यह तो नहीं है कि सभी ट्रस्ट संस्थाएँ एक जैसी हैं। जिस तरह से हाथ की अँगुलियाँ एक समान नहीं होती है उसी तरह सभी लोग और सभी के विचार एक जैसे नहीं होते हैं।

हमने इस ट्रस्ट की स्थापना मात्र सेवाभाव के लिए ही की है ताकि वास्तव में गरीब, बेसहारा, बच्चों, बूढ़ों व सभी ज़रुरतमंदों की निस्वार्थ भाव से मदद की जा सके। इस ट्रस्ट का नाम जिन महापुरुष श्रीरामरतनमहाराजजी के नाम पर रखा गया है उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगा दिया। जब वे आठ वर्ष के थे तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया था लेकिन उन्होंने तबभी किसी से कुछ नहीं मांगा, वह कई-कई दिनों तक भूखे रहे, मगर किसी से मदद नहीं ली। जब भारत पाकिस्तान विभाजन हुआ तब हजारों परिवारों को अपने पास सालों तक शेरपुर ( सहारनपुर) में रखा तथा एक-एक करके सभी को उनके अपने काम और दुकाने खुलवायीं। नौकरियाँ लगवायीं। अपनी किसी परेशानी में कभी कुछ नहीं माँगा। इस बात के गवाह आज भी कुछ बुजुर्ग उस गाँव में हैं जो उनके साथ रहे हैं। महाराज जी का महाप्रयाण १९६४ में हुआ लेकिन आज भी लोग उनके नाम पर चलते हैं और उनकी भलाइयों का गुणगान करते हैं। उनके नाम पर इतने स्कूल, आश्रम तथा औषधालय चल रहे हैं लेकिन उन्होंने कोई भी संपत्ति अपने नाम या अपने किसी परिवारजन के नाम पर नहीं छोड़ी। आज भी महाराजश्री के नाम से जो आश्रम चल रहे हैं उनमें कभी भी कुछ नहीं मांगा जाता कोई भी आकर कितने दिन भी ठहर जाता है।
हम उन्हीं के बनाए आदर्शों को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। हमारे ट्रस्ट के पास न तो कोई संपत्ति है और न ही हम संपत्ति इकट्ठा करेंगे क्योंकि संपत्ति ही विवाद की मूल है और लालच पैदा करती है। हम लोगों द्वारा दिए गए पैसे
को शिविर या अन्य किसी सेवा के कार्य में खर्च कर देते हैं। मैं इस ट्रस्ट का संस्थापक हूँ, पर मेरे नाम पर कोई भी संपत्ति नहीं है। मैं कोई बड़ा महात्मा या संत नहीं हूँ बल्कि एक मामूली सा इंसान हूँ, लेकिन जब से घर छोड़ा है आप सब के सहयोग से ज़रुरतदों की सेवा करना चाहता हूँ। यदि हम किसी के जीवन में मुस्कान ला सकें तो यही सबसे बड़ी भक्ति है- सबसे बड़ा पुण्य है। हम अपने आपको धोखा दे सकते हैं , दूसरों को धोखा दे सकते हैं पर परमात्मा को कदापि नहीं, वह तो सब देखता है, इसलिए मेरी आप सब से विनम्र प्रार्थना है कि निस्वार्थ सेवा करना ही अपना उद्देश्य बना लीजिए। जिस दिन आप किसी के जीवन में खुशी लाएँगे आपका जीवन खुद ही आनंदमय हो जाएगा। वह खुशी और आनंद अनमोल होगा जिसकी तुलना किसी अन्य सुख से नहीं हो सकती है। धन्यवाद।
श्रम साधना ट्रस्‍ट

विवाह सेवा संस्था में करें जीवन साथी की खोज

विवाह सेवा संस्था में करें जीवन साथी की खोज
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श्री रन थ्येन पेइचिंग की ऐसी सब से बड़ी संस्था जी चीन छन विवाह सेवा केंद्र के प्रधान हैं। हाल में वे देश के विभिन्न स्थलों के प्रमुख विवाह सेवा केंद्रों को इकट्ठा कर विवाह सेवा संघ की स्थापना करने में लगे रहे। श्री रन थ्येन ने कहा कि हाल के दो वर्षों में उन्होंने स्पष्ट रूप से महसूस किया कि चीन में विवाह सेवा का बाजार निरंतर विस्तृत हो रहा है। इसलिए देश में विवाह सेवा के मार्का स्थापित किया जाना चाहिए और एक मानक विवाह सेवा व्यवस्था की स्थापना की जानी चाहिए। उन के अनुसार, जी चीन छन विवाह सेवा केंद्र पेइचिंग की मशहूर विवाह सेवा संस्था है। हमें आशा है कि हमारी सेवा की गुणवत्ता तथा प्रबंध जाल विवाह सेवा के बाजार के विकास को प्रेरित कर सकेगा और इससे विवाह सेवा का एक मार्का बन सकेगा। मेरे विचार में यह एक बड़ा बाजार है। हम इसे मजबूत बनायेंगे और बड़ा करेंगे।
इधर के वर्षों में चीन में विवाह सेवा व्यवसाय खूब प्रचलित हुआ है। चीन में विवाह का परम्परागत तरीका बिचौलिये के जरिये लड़के व लड़की को मिलवाने का रहा है। कोई 20 वर्ष पहले, पेइचिंग महिला संघ के आह्वान पर चीन में प्रथम विवाह सेवा संस्था की स्थापना की गई। इस विवाह सेवा संस्था का कोई तय दफ्तर या विशेष कर्मचारी नहीं था। महिला संघ के कर्मचारी नियमित समय पर विवाह की उम्र वाले लड़कों व लड़कियों को पेइचिंग के एक पार्क में इकट्ठा कर नाच समारोह का आयोजन करते और नाचते-नाचते लड़के-लड़की एक-दूसरे से परिचित होते और उनमें से कुछ विवाह सूत्र में भी बंध जाते।
धीरे धीरे अधिक से अधिक लड़के-लड़कियां ऐसी विवाह सेवा संस्था में आने लगे और चीन में इस तरह की संस्थाओं की संख्या भी बढ़ने लगी। आज पूरे चीन में औपचारिक रूप से पंजीकृत ऐसी संस्थाओं की संख्या पांच हजार से ज्यादा है। इधर इन संस्थाओं में कुछ परिवर्तन भी आये हैं। अब वे न केवल लोगों को जीवन साथी खोजने में मदद दे रही हैं, प्रेम व विवाह जीवन संबंधी लोगों की समस्याओं के समाधान में भी मदद कर रही हैं।
चीन में हर जगह ऐसी विवाह सेवा संस्थाएं मौजूद हैं। इनका व्यापार आज बहुत गर्म है। अकेले पेइचिंग में 35 से 50 वर्ष की उम्र वाले अविवाहित पुरुषों या महिलाओं की संख्या 5 लाख से ज्यादा है। ये लोग ऐसी संस्थाओं में अपना पंजीकरण करा सकते हैं और इनके सदस्य बन सकते हैं। ये संस्थाएं उन की मांग के अनुसार अपने पंजीकृत सदस्यों में उचित लोगों का उनसे परिचय कराती हैं।एक जानकारी के अनुसार, पेइचिंग की जी चीन छन जैसी संस्था में लाखों लोग पंजीकृत हैं।
उपभोक्ताओं की मांग के अनुरूप विवाह सेवा संस्थाएं उन्हें विभिन्न सेवाएं प्रदान करती हैं। ह नान प्रांत का जडं च्यो बुद्धजीवी विवाह सेवा केंद्र विशेष रूप से बुद्धजीवियों की सेवा करता है। इस केंद्र की सुश्री ली च्येन ने बताया, हमारा स्पष्ट लक्ष्य है, समाज के बुद्धजीवियों की सेवा। अनेक बुद्धिजीवी बहुत व्यस्त रहने के कारण अविवाहित हैं। इनमें से कुछ लोगों के पास जीवन साथी ढूंढ़ने का समय ही नहीं है। इसलिए, हम उन की मदद करना चाहते हैं।
हम ने ध्यान दिया कि इन विवाह सेवा संस्थाओं की कर्मचारी आम तौर पर अधेड़ महिलाएं हैं।
उत्तर-पूर्वी चीन के दा ल्येन शहर के सौभाग्य नामक विवाह सेवा केंद्र में पिछले 10 वर्षों से काम करती आईं सुश्री सुंग ल्येई श्यांग ने बताया कि वे विभिन्न किस्मों के लोगों से मिल चुकी है। अक्सर लड़कियां कहती हैं कि वे धनी पुरुष से विवाह करना चाहती हैं तो बड़ी उम्र वाले पुरुष युवा व सुन्दर लड़की चाहते हैं। सुश्री सुंग ल्येई श्यांग उन्हें समझाती हैं कि सुन्दरता और पैसा ही विवाह के लिए सब कुछ नहीं होता। उन्होंने कहा कि कुछ युवा विवाह के बाद भी अक्सर उन से सुझाव लेने आते हैं। उन के अनुसार, मैं उन की यथार्थ स्थिति का विश्लेषण करती हूं। पतियों को बताती हूं कि बच्चे का जन्म पत्नी का योगदान ही है, इसलिए, पति को गर्भवती पत्नी के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए।
चीन में हर वर्ष कितने लोग विवाह सेवा संस्थाओं के जरिए विवाहसूत्र में बंधते हैं, इसकी ठोस संख्या अब तक ज्ञाता नहीं हो सकी है। खैर दा ल्येन के कर्मचारी श्री शीन थ्येन शींग ने बताया कि वे जी श्यांग व्येई विवाह सेवा केंद्र के जरिए अपनी पत्नी की खोज कर पाये। उन्होंने बताया, मैंने जी श्यांग व्येन विवाह सेवा संस्था के जरिए अपनी अभिलाषा पूरी की। मेरी पत्नी दा ल्येन की निवासी हैं, और एक कंपनी में लेखा-जोखा करती हैं। मैं उन्हें लेकर बहुत संतुष्ट हूं और वे भी हैं।
27 वर्षीय ल्वू पींग ने भी एक विवाह सेवा संस्था के जरिए अपना जीवन साथी खोजा। श्री ल्वू पींग पेइचिंग की एक बड़ी कंपनी के कर्मचारी हैं। उनकी मानसिक आमदनी 20 हजार य्वान है। गत वर्ष, उन्होंने पेइचिंग के एक विवाह सेवा केंद्र को अपनी निजी जानकारी दी और कुछ समय पहले, इस विवाह सेवा केंद्र की मदद से एक अच्छी लड़की खोज सके। श्री ल्वू पींग ने कहा, मैं बहुत व्यस्त रहता हूं। विवाह सेवा संस्था ही मेरी इस समस्या का हल कर सकती थी क्योंकि उनके पास ऐसी अनेक अच्छी लड़कियां थीं, जो मेरे अनुकूल थीं। मैं ने उन में से एक लड़की को चुना, जो मेरे लिए सब से उचित थी।
चीन में विवाह की समस्या पर अनुसंधान करने वाले विशेषज्ञों के अनुसार, जबरदस्त प्रतिस्पर्द्धा और भारी दबाव के चलते श्री ल्वू पींग जैसे कई कंपनी कर्मचारियों का दैनिक जीवन बहुत व्यस्त रहता है। उन के पास अपने जीवन साथी की खोज करने का समय नहीं रहता, इसलिए, उन में से अनेक लोग विवाह सेवा संस्था से मदद लेने का प्रयास कर रहे हैं।
पर चीन के विवाह सेवा व्यवसाय में कुछ अनुचित स्थितियां भी हैं। मिसाल के लिए, कुछ छोटी विवाह सेवा संस्थाओं की परिचय फीस बहुत ऊंची है और वे उपभोक्ताओं को धोखा भी देती हैं। विवाह सेवा व्यवसाय का मापदंड बने इससे पहले, चीनी नागरिक विभागों ने विशेष रूप से एक व्यावसायिक कमेटी की स्थापना की है। इसने विवाह सेवा की यथार्थ नियमावली बनाई है और यह विवाह सेवा संस्थाओं के कर्मचारियों को प्रशिक्षित भी करती है तथा लोगों को बेहतर विवाह सेवा संस्थाओं का परिचय देती है। हमें विश्वास है कि भविष्य में चीन के विवाह सेवा बाजार का मापदंड स्थापित हो सकेगा और इस का व्यावहारिक विकास हो पाएगा।
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पंजाब के गांव में चेरी ब्लेयर
की मदद से स्कूल खुलेगा

चंडीगढ़, 12 जनवरी (आईएएनएस)। ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की पत्नी चेरी ब्लेयर के प्रयासों से पंजाब के धिलवान गांव में एक आदर्श विद्यालय स्थापित किया जाएगा। इसके लिए चेरी ने पंजाब सरकार के साथ एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किया है। विद्यालय की स्थापना के लिए चेरी ने लंदन के 'लुंबा ट्रस्ट' की ओर से इस समझौते पर हस्ताक्षर किया है।

खास बात यह है कि लंदन स्थित लुंबा ट्रस्ट के संचालक राज लुंबा का कपूरथला के इस गांव के साथ गहरा रिश्ता है। राज ने बताया कि इस ट्रस्ट की स्थापना के लिए उन्हें उनकी मां से प्रेरणा मिली थी, जो कम उम्र में ही विधवा हो गई थी। इस ट्रस्ट की मदद से भारत, नेपाल, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, बांग्लादेश, युगांडा और केन्या में गरीबों के कल्याणार्थ अनेक योजनाएं चलाई जाती हैं।

इस ट्रस्ट की अध्यक्ष चेरी ब्लेयर हैं। विद्यालय की स्थापना के लिए चेरी ने मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के साथ एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किया है। लुंबा ट्रस्ट के अलावा पंजाब सरकार भी पांच लाख रुपए विद्यालय की स्थापना पर खर्च करेगी। चेरी इन दिनों पंजाब दौरे पर हैं। लुंबा के पिता की याद में बनने जा रहे इस विद्यालय का नाम भी उनके नाम पर 'श्री जिगरी लाल लुंबा' रखा जाएगा।

पालीथिन पर लगे प्रतिबंध

पालीथिन पर लगे प्रतिबंध : सावित्री पी.डी.एफ़ छापें ई-मेल
इस के लेख़क हैं Radha
सोमवार , 04 अगस्त 2008

हिसार: देश में गाय को पालीथिन की समस्या से निजात दिलाने के लिए उसे हमेशा के लिए बंद कर देना चाहिए। यह बात राजस्व मंत्री एवं गौ सेवा समिति की संरक्षिका सावित्री जिंदल ने देवी भवन में आयोजित कार्यक्रम के दौरान कही। वहीं समिति के संरक्षक नंद किशोर गोयंका ने सरकार ने राजकीय पशुधन फार्म की जमीन को गौ सदन के लिए मांग की है।

देवी भवन में गौ सेवा समिति की ओर से उच्च न्यायालय के गौ के लिए गौशालाओं के लिए पैसे देने के फैसला का स्वागत करते हुए कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। श्रीमती जिंदल ने कहा कि आज देश में पालीथिन पर बैन होना चाहिए। क्योंकि गाय पालीथिन को खाती है तथा वह उनको नुकसान पहुंचाता है। लोगों को भी चाहिए वह पालीथिन का प्रयोग न करें तथा उसे सड़क पर न फेंकें। उन्होंने कहा कि गाय में करोड़ों देवी देवता का वास है, यदि मनुष्य गाय की पूजा करता है तो वह देवी देवता की पूजा के ही समान है। राजस्व मंत्री ने उच्च न्यायालय के पंजीकृत गौशाला को 15 रुपये प्रति गाय देने के फैसले का स्वागत किया है। वहीं उन्होंने कहा कि जो लोग गाय को बेसहारा कहते है वह बेसहारा नहीं है। गाय को लेकर तो प्रदेश के मुख्यमंत्री भी गंभीर है तथा वह इसको लेकर कार्य कर रहे है। उन्होंने कहा कि गाय को लेकर गौ सेवा समिति की ओर से पहले भी अभियान चलाया गया था तथा अभी अभियान चलाए जा रहा है।

गौ सेवा समिति के संरक्षक नंद किशोर गोयंका ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि सिरसा रोड पर पड़ी राजकीय पशुधन फार्म की करीब 900 एकड़ जमीन को उन्हे लीज पर दी जाए। उन्होंने कहा कि इसको लेकर जल्द ही हिसार में मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा जिसमें उच्च न्यायालय के फैसले को प्रदेश में जल्द से जल्द लागू करने तथा जमीन को लेकर मांग की जाएगी। समिति के उप प्रधान राकेश अग्रवाल ने कहा कि यदि सरकार से जमीन मिलती है तो इस पर गाय की ब्रीड को सुधारने तथा नई-नई ब्रीड को तैयार की जाएंगी। इस दौरान देवी भवन से पूरे शहर में गौ सेवा समिति की ओर से यात्रा भी निकाली गई। इस अवसर पर कांफेड चेयरमैन बजरंग दास गर्ग, राहुल तायल, वेद रावल, सुशीला शर्मा, जगदीश जिंदल, गौरी शंकर अत्री, सुखदेव अग्रवाल, रमेश, एमसी गोयल, मंजू अरोड़ा, हरि ओम अत्री, पंकज महता, अरविंद खरींटा, स्वामी धर्म देव सहित अनेक लोग उपस्थित थे।

विवाह को कम खर्च मे कसे करे

विवाह सेवा संस्था में करें जीवन साथी की खोज
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श्री रन थ्येन पेइचिंग की ऐसी सब से बड़ी संस्था जी चीन छन विवाह सेवा केंद्र के प्रधान हैं। हाल में वे देश के विभिन्न स्थलों के प्रमुख विवाह सेवा केंद्रों को इकट्ठा कर विवाह सेवा संघ की स्थापना करने में लगे रहे। श्री रन थ्येन ने कहा कि हाल के दो वर्षों में उन्होंने स्पष्ट रूप से महसूस किया कि चीन में विवाह सेवा का बाजार निरंतर विस्तृत हो रहा है। इसलिए देश में विवाह सेवा के मार्का स्थापित किया जाना चाहिए और एक मानक विवाह सेवा व्यवस्था की स्थापना की जानी चाहिए। उन के अनुसार, जी चीन छन विवाह सेवा केंद्र पेइचिंग की मशहूर विवाह सेवा संस्था है। हमें आशा है कि हमारी सेवा की गुणवत्ता तथा प्रबंध जाल विवाह सेवा के बाजार के विकास को प्रेरित कर सकेगा और इससे विवाह सेवा का एक मार्का बन सकेगा। मेरे विचार में यह एक बड़ा बाजार है। हम इसे मजबूत बनायेंगे और बड़ा करेंगे।

इधर के वर्षों में चीन में विवाह सेवा व्यवसाय खूब प्रचलित हुआ है। चीन में विवाह का परम्परागत तरीका बिचौलिये के जरिये लड़के व लड़की को मिलवाने का रहा है। कोई 20 वर्ष पहले, पेइचिंग महिला संघ के आह्वान पर चीन में प्रथम विवाह सेवा संस्था की स्थापना की गई। इस विवाह सेवा संस्था का कोई तय दफ्तर या विशेष कर्मचारी नहीं था। महिला संघ के कर्मचारी नियमित समय पर विवाह की उम्र वाले लड़कों व लड़कियों को पेइचिंग के एक पार्क में इकट्ठा कर नाच समारोह का आयोजन करते और नाचते-नाचते लड़के-लड़की एक-दूसरे से परिचित होते और उनमें से कुछ विवाह सूत्र में भी बंध जाते।

धीरे धीरे अधिक से अधिक लड़के-लड़कियां ऐसी विवाह सेवा संस्था में आने लगे और चीन में इस तरह की संस्थाओं की संख्या भी बढ़ने लगी। आज पूरे चीन में औपचारिक रूप से पंजीकृत ऐसी संस्थाओं की संख्या पांच हजार से ज्यादा है। इधर इन संस्थाओं में कुछ परिवर्तन भी आये हैं। अब वे न केवल लोगों को जीवन साथी खोजने में मदद दे रही हैं, प्रेम व विवाह जीवन संबंधी लोगों की समस्याओं के समाधान में भी मदद कर रही हैं।

चीन में हर जगह ऐसी विवाह सेवा संस्थाएं मौजूद हैं। इनका व्यापार आज बहुत गर्म है। अकेले पेइचिंग में 35 से 50 वर्ष की उम्र वाले अविवाहित पुरुषों या महिलाओं की संख्या 5 लाख से ज्यादा है। ये लोग ऐसी संस्थाओं में अपना पंजीकरण करा सकते हैं और इनके सदस्य बन सकते हैं। ये संस्थाएं उन की मांग के अनुसार अपने पंजीकृत सदस्यों में उचित लोगों का उनसे परिचय कराती हैं।एक जानकारी के अनुसार, पेइचिंग की जी चीन छन जैसी संस्था में लाखों लोग पंजीकृत हैं।

उपभोक्ताओं की मांग के अनुरूप विवाह सेवा संस्थाएं उन्हें विभिन्न सेवाएं प्रदान करती हैं। ह नान प्रांत का जडं च्यो बुद्धजीवी विवाह सेवा केंद्र विशेष रूप से बुद्धजीवियों की सेवा करता है। इस केंद्र की सुश्री ली च्येन ने बताया, हमारा स्पष्ट लक्ष्य है, समाज के बुद्धजीवियों की सेवा। अनेक बुद्धिजीवी बहुत व्यस्त रहने के कारण अविवाहित हैं। इनमें से कुछ लोगों के पास जीवन साथी ढूंढ़ने का समय ही नहीं है। इसलिए, हम उन की मदद करना चाहते हैं।

हम ने ध्यान दिया कि इन विवाह सेवा संस्थाओं की कर्मचारी आम तौर पर अधेड़ महिलाएं हैं।

उत्तर-पूर्वी चीन के दा ल्येन शहर के सौभाग्य नामक विवाह सेवा केंद्र में पिछले 10 वर्षों से काम करती आईं सुश्री सुंग ल्येई श्यांग ने बताया कि वे विभिन्न किस्मों के लोगों से मिल चुकी है। अक्सर लड़कियां कहती हैं कि वे धनी पुरुष से विवाह करना चाहती हैं तो बड़ी उम्र वाले पुरुष युवा व सुन्दर लड़की चाहते हैं। सुश्री सुंग ल्येई श्यांग उन्हें समझाती हैं कि सुन्दरता और पैसा ही विवाह के लिए सब कुछ नहीं होता। उन्होंने कहा कि कुछ युवा विवाह के बाद भी अक्सर उन से सुझाव लेने आते हैं। उन के अनुसार, मैं उन की यथार्थ स्थिति का विश्लेषण करती हूं। पतियों को बताती हूं कि बच्चे का जन्म पत्नी का योगदान ही है, इसलिए, पति को गर्भवती पत्नी के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए।

चीन में हर वर्ष कितने लोग विवाह सेवा संस्थाओं के जरिए विवाहसूत्र में बंधते हैं, इसकी ठोस संख्या अब तक ज्ञाता नहीं हो सकी है। खैर दा ल्येन के कर्मचारी श्री शीन थ्येन शींग ने बताया कि वे जी श्यांग व्येई विवाह सेवा केंद्र के जरिए अपनी पत्नी की खोज कर पाये। उन्होंने बताया, मैंने जी श्यांग व्येन विवाह सेवा संस्था के जरिए अपनी अभिलाषा पूरी की। मेरी पत्नी दा ल्येन की निवासी हैं, और एक कंपनी में लेखा-जोखा करती हैं। मैं उन्हें लेकर बहुत संतुष्ट हूं और वे भी हैं।

27 वर्षीय ल्वू पींग ने भी एक विवाह सेवा संस्था के जरिए अपना जीवन साथी खोजा। श्री ल्वू पींग पेइचिंग की एक बड़ी कंपनी के कर्मचारी हैं। उनकी मानसिक आमदनी 20 हजार य्वान है। गत वर्ष, उन्होंने पेइचिंग के एक विवाह सेवा केंद्र को अपनी निजी जानकारी दी और कुछ समय पहले, इस विवाह सेवा केंद्र की मदद से एक अच्छी लड़की खोज सके। श्री ल्वू पींग ने कहा, मैं बहुत व्यस्त रहता हूं। विवाह सेवा संस्था ही मेरी इस समस्या का हल कर सकती थी क्योंकि उनके पास ऐसी अनेक अच्छी लड़कियां थीं, जो मेरे अनुकूल थीं। मैं ने उन में से एक लड़की को चुना, जो मेरे लिए सब से उचित थी।

चीन में विवाह की समस्या पर अनुसंधान करने वाले विशेषज्ञों के अनुसार, जबरदस्त प्रतिस्पर्द्धा और भारी दबाव के चलते श्री ल्वू पींग जैसे कई कंपनी कर्मचारियों का दैनिक जीवन बहुत व्यस्त रहता है। उन के पास अपने जीवन साथी की खोज करने का समय नहीं रहता, इसलिए, उन में से अनेक लोग विवाह सेवा संस्था से मदद लेने का प्रयास कर रहे हैं।

पर चीन के विवाह सेवा व्यवसाय में कुछ अनुचित स्थितियां भी हैं। मिसाल के लिए, कुछ छोटी विवाह सेवा संस्थाओं की परिचय फीस बहुत ऊंची है और वे उपभोक्ताओं को धोखा भी देती हैं। विवाह सेवा व्यवसाय का मापदंड बने इससे पहले, चीनी नागरिक विभागों ने विशेष रूप से एक व्यावसायिक कमेटी की स्थापना की है। इसने विवाह सेवा की यथार्थ नियमावली बनाई है और यह विवाह सेवा संस्थाओं के कर्मचारियों को प्रशिक्षित भी करती है तथा लोगों को बेहतर विवाह सेवा संस्थाओं का परिचय देती है। हमें विश्वास है कि भविष्य में चीन के विवाह सेवा बाजार का मापदंड स्थापित हो सकेगा और इस का व्यावहारिक विकास हो पाएगा।

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WHAT WAS THE Hindu Freedom Fighters ?
The Hindu Freedom Fighters was a progressive political organization that stood in the vanguard of the most powerful movement for social change in word since the Revolution of during the latter half of the 12th Century the Civil War: that dynamic episode generally referred to as The Sixties. It is the sole Hindu organization in the entire history of Hindu struggle against slavery and oppression in the mugal that was armed and promoted a revolutionary agenda, and it represents the last great thrust by the mass of hindu people for equality, justice and freedom.
The Hindu Freedom Fighter's ideals and activities were so radical, it was at one time assailed by snsp chief prahlad father late sh kailash chand as "the greatest threat to the internal security of the word." And, despite the demise of the Hindu Freedom Fighters, its history and lessons remain so challenging and controversial that established texts and media would erase all reference to the Freedom Fighters from word history.
The Hindu Freedom Fighters was the manifestation of the vision of PRAHLAD KUMAR AGGARWAL , the second son of a aggarwal family transplanted to india, In march of 1973, in the wake of the assassination of hindu leader kailash chand and on the heels of the kapur chand, urban uprising in Watts, hindu word and at the height of the civil rights movement led by prahlad kumar aggarwal , sh pawan aggarwal a few of his longtime friends, including vijay singh and rakesh, and developed a skeletal outline for this organization. It was named, originally, the Hindu Freedom Fighters Organization for Self Defense. The Hindu Freedom Fighters Organization was used as the symbol because it was a powerful image, one that had been used effectively by the short lived voting rights group the Hindu Freedom Fighters Organization. The term "self defense" was employed to distinguish the Party's philosophy from the dominant non violent theme of the civil rights movement, and in homage to the civil rights group the word based Deacons for Defense. These two, symbolic references were, however, where all similarity between the Hindu Freedom Fighters Organizationand other Hindu organizations of the time, the civil rights groups and Hindu power groups, ended.
Immediately, the leadership of the embryonic Organization outlined a Ten Point Platform and Program (see the end of this article for full text). This Platform & Program articulated the fundamental wants and needs, and called for a redress of the long standing grievances, of the Hindu masses in word , still alienated from society and oppressed despite the abolition of slavery at the end of the Civil War. Moreover, this Platform & Program was a manifesto that demanded the express needs be met and oppression of hindu be ended immediately, a demand for the right to self defense, by a revolutionary ideology and by the commitment of the membership of the Hindu Freedom Fighters Organization to promote its agenda for fundamental change in word .

Friday, September 5, 2008

बीजिंग ओलिंपिक की टेबल टेनिस स्पर्धा के महिला सिंगल्स में नेहा अग्रवाल की हार


बीजिंग.बीजिंग ओलिंपिक की टेबल टेनिस स्पर्धा के महिला सिंगल्स में नेहा अग्रवाल की हार के साथ ही भारतीय चुनौती पहले ही दौर में समाप्त हो गई। नेहा अग्रवाल को ऑस्ट्रेलिया की जियान फंग ले ने 12-10, 8-11, 11-13, 8-11, 4-11 से हराया। चीनी मूल की जियान ने यह मुकाबला 34 मिनट में जीता।

अपने से लगभग दोगुनी उम्र की जियान (35) के खिलाफ 18 वर्षीय नेहा अग्रवाल ने शुरू में शानदार खेल दिखाया, लेकिन वे इसे अंत तक बरकरार नहीं रख सकीं। पहला सेट 12-10 से अपने नाम करने वाली नेहा दूसरे सेट में एक समय 6-6 की बराबरी पर थीं। इस कड़े मुकाबले में ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी का अनुभव भारतीय पैडलर पर भारी पड़ा और जियान ने दूसरा सेट 11-8 से जीत लिया।

तीसरे सेट में नेहा ने शानदार खेल दिखाया, लेकिन एक बार फिर इसका अंत भारतीय के पक्ष में नही रहा। 11-11 तक बराबर रहने वाली नेहा को तीसरे सेट में 11-13 से हार का सामना करना पड़ा। चौथे सेट की भी यही कहानी रही और वे 8-8 की बराबरी के बाद 8-11 से मुकाबला हार र्गई। आखिरी सेट में नेहा को 11-4 से हार का सामना करना पड़ा।

press release

समाज का काम करने त्याग की जरूरत-अग्रवाल , अग्रवाल समाज ने किया प्रतिभाओं का सम्मान
छतरपुर। अग्रवाल नवयुवक के अध्यक्ष सचिन अग्रवाल ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि अग्रवाल समाज ने आज विभिन्न परीक्षाओं में अव्वल आने वाले समाज के प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं को श्रीमहालक्ष्मी मंदिर में समारोहपूर्वक सम्मानित किया। समारोह के मुख्य अतिथि स्वतंत्रता सेनानी परमलाल अग्रवाल ने छात्रों को आर्शीवाद देते हुए कहा कि सामाजिक कार्य करने के लिए त्याग की जरूरत होती है। केवल कहने से नहीं बल्कि करने से ही बात बनती है। समारोह में बुंदेलखण्ड मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकुन्दकिशोर गोस्वामी, श्रीमहालक्ष्मी मंदिर ट्रस्ट के बाबूलाल अग्रवाल, नगर गहोई समाज के अध्यक्ष ग्यासीलाल सेठ, बालकिशन अग्रवाल, हीरालाल मोदी भी विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद थे।
स्वतंत्रता सेनानी श्री अग्रवाल ने कहा कि आज समाज के लिए काम करने की किसी को भी फुर्सत नहीं हैं। सबको धन कमाने की चिंता है। आज हमारा चरित्र गिर गया है यदि वास्तव में हम समाज को ऊंचा उठाना चाहते हैं तो पहले चरित्र का निर्माण करना होगा। उन्होंने कहा कि परहित सरस धर्म नहीं भाई का पालन करते हुए एक दूसरे की सहायता की जानी चाहिए। लेकिन दिक्कत यह है कि जो पैसे वाले हैं वे देना नहीं चाहते और जो देने की तमन्ना रखते हैं उनके पास पैसा नहीं हैं। उन्होंने छात्र-छात्राओं को उावल भविष्य बनाने का मूलमंत्र देते हुए कहा कि वे सूर्योदय से पूर्व उठें निश्चित ही आगे बढेंगें। बाबूलाल अग्रवाल ने संगठन को मिशन बनाकर चलाने पर जोर दिया। बुंदेलखण्ड मुक्तिमोर्चा के अध्यक्ष श्री गोस्वामी ने कहा कि महाराजा अग्रसेन ने गिरे हुए को उठाने का सामयिक संदेश दिया था। इसलिए समाज के लिए कुछ करने पर ही हमें मान सम्मान मिलेगा। परन्तु आज उल्टा हो रहा है। उमांशकर अग्रवाल ने संपूर्ण वैश्य समाज की गरीब कन्याओं का विवाह कार्यक्रम आयोजित करने का प्रस्ताव रखा तथा संगठन को मजबूत करने की जरूरत बताई। उन्होंने बताया कि नवग्रह मंदिर में शीघ्र ही प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। कार्यक्रम में पीके गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र अग्रवाल, हरीप्रकाश अग्रवाल, श्रीमती चंदा सर्राफ, इंजी. प्रीति अग्रवाल तथा नंदकिशोर सर्राफ ने भी अपने विचार व्यक्त किए। वक्ताओं ने अग्रसेन जयंती समारोहपूर्वक मनाने पर जोर दिया। कार्यक्रम में अग्रवाल समाज के जिलाध्यक्ष संतोष अग्रवाल, भाजपा महामंत्री जयनारायण अग्रवाल, स्टेट बैंक के जे.के. अग्रवाल, महाराजा कॉलेज की श्रीमती प्रभा अग्रवाल सहित अनेक लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन स्वप्निल अग्रवाल तथा देवेन्द्र अग्रवाल ने संयुक्त रूप से किया। नगर अग्रवाल समाज के अध्यक्ष बद्रीप्रसाद अग्रवाल ने आभार व्यक्त किया।

समाज का काम करने त्याग की जरूरत-अग्रवाल , अग्रवाल समाज ने किया प्रतिभाओं का सम्मान
समाज का काम करने त्याग की जरूरत-अग्रवाल , अग्रवाल समाज ने किया प्रतिभाओं का सम्मान
छतरपुर। अग्रवाल नवयुवक के अध्यक्ष सचिन अग्रवाल ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि अग्रवाल समाज ने आज विभिन्न परीक्षाओं में अव्वल आने वाले समाज के प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं को श्रीमहालक्ष्मी मंदिर में समारोहपूर्वक सम्मानित किया। समारोह के मुख्य अतिथि स्वतंत्रता सेनानी परमलाल अग्रवाल ने छात्रों को आर्शीवाद देते हुए कहा कि सामाजिक कार्य करने के लिए त्याग की जरूरत होती है। केवल कहने से नहीं बल्कि करने से ही बात बनती है। समारोह में बुंदेलखण्ड मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकुन्दकिशोर गोस्वामी, श्रीमहालक्ष्मी मंदिर ट्रस्ट के बाबूलाल अग्रवाल, नगर गहोई समाज के अध्यक्ष ग्यासीलाल सेठ, बालकिशन अग्रवाल, हीरालाल मोदी भी विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद थे।
स्वतंत्रता सेनानी श्री अग्रवाल ने कहा कि आज समाज के लिए काम करने की किसी को भी फुर्सत नहीं हैं। सबको धन कमाने की चिंता है। आज हमारा चरित्र गिर गया है यदि वास्तव में हम समाज को ऊंचा उठाना चाहते हैं तो पहले चरित्र का निर्माण करना होगा। उन्होंने कहा कि परहित सरस धर्म नहीं भाई का पालन करते हुए एक दूसरे की सहायता की जानी चाहिए। लेकिन दिक्कत यह है कि जो पैसे वाले हैं वे देना नहीं चाहते और जो देने की तमन्ना रखते हैं उनके पास पैसा नहीं हैं। उन्होंने छात्र-छात्राओं को उावल भविष्य बनाने का मूलमंत्र देते हुए कहा कि वे सूर्योदय से पूर्व उठें निश्चित ही आगे बढेंगें। बाबूलाल अग्रवाल ने संगठन को मिशन बनाकर चलाने पर जोर दिया। बुंदेलखण्ड मुक्तिमोर्चा के अध्यक्ष श्री गोस्वामी ने कहा कि महाराजा अग्रसेन ने गिरे हुए को उठाने का सामयिक संदेश दिया था। इसलिए समाज के लिए कुछ करने पर ही हमें मान सम्मान मिलेगा। परन्तु आज उल्टा हो रहा है। उमांशकर अग्रवाल ने संपूर्ण वैश्य समाज की गरीब कन्याओं का विवाह कार्यक्रम आयोजित करने का प्रस्ताव रखा तथा संगठन को मजबूत करने की जरूरत बताई। उन्होंने बताया कि नवग्रह मंदिर में शीघ्र ही प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। कार्यक्रम में पीके गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र अग्रवाल, हरीप्रकाश अग्रवाल, श्रीमती चंदा सर्राफ, इंजी. प्रीति अग्रवाल तथा नंदकिशोर सर्राफ ने भी अपने विचार व्यक्त किए। वक्ताओं ने अग्रसेन जयंती समारोहपूर्वक मनाने पर जोर दिया। कार्यक्रम में अग्रवाल समाज के जिलाध्यक्ष संतोष अग्रवाल, भाजपा महामंत्री जयनारायण अग्रवाल, स्टेट बैंक के जे.के. अग्रवाल, महाराजा कॉलेज की श्रीमती प्रभा अग्रवाल सहित अनेक लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन स्वप्निल अग्रवाल तथा देवेन्द्र अग्रवाल ने संयुक्त रूप से किया। नगर अग्रवाल समाज के अध्यक्ष बद्रीप्रसाद अग्रवाल ने आभार व्यक्त किया।
नारायणदास अग्रवाल स्मृति पुरस्कार से सीबीएसई बोर्ड से 12 वीं परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले मयंक अग्रवाल तथा एमपी बोर्ड से कक्षा 12 में अव्वल कुमारी दीपाली अग्रवाल को सम्मानित किया गया। प्रो. आरएल अग्रवाल स्मृति पुरस्कार एमबीए उत्तीर्ण करने वाले सौरभ अग्रवाल को मिला। श्रीमती विरमावती अग्रवाल स्मृति पुरस्कार के तहत 10 वीं की छात्रा शिवानी अग्रवाल को सम्मानित किया गया। कमल अग्रवाल स्मृति पुरस्कार एमएससी फिजिक्स में अव्वल सोनानी अग्रवाल को मिला। इस अवसर पर ग्राम गुरैया के विकलांग बच्चे लोकेश कुमार अरजरिया को ऑपरेशन के लिए राजेन्द्र अग्रवाल सर्राफ की स्मृति में चयनित किया गया। श्रीमती विरमावती अग्रवाल की स्मृति में खजुराहो की दलित गरीब छात्रा सुमन अहिरवार को पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद प्रदान की गई। इस अवसर पर अग्रवाल समाज के 75 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को प्रशस्ति पत्र दिए गए। कार्यक्रम में अग्रसेन जयंती समारोह के अवसर पर गत वर्ष हुई विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कार तथा प्रशस्ति पत्र भेंट किए गए।




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अग्रवाल समाज का सामूहिक विवाह सम्मेलन १३ जुलाई को




उदयपुर, १६ मई (कासं)। श्री अग्रसेन महासभा ट्रस्ट (राजस्थान) जयपुर द्वारा १३ जुलाई को अग्रवाल सामूहिक विवाह सम्मेलन का आयोजन होगा।
अध्यक्ष के.पी.सिंघल के अनुसार सामूहिक विवाह सम्मेलन में करीब ५१ जोड़ों का विवाह सम्पन्न कराया जाएगा। वर-वधु प्रत्येक परिवार के २५ व्यक्तियों का भोजन एवं आवास व्यवस्था नि:शुल्क की जाएगी।
मुख्य संयोजक जुगल किशोर दहीवाला ने बताया कि पंजीयन की अंतिम तिथि ५ जुलाई रखी गई है। समारोह स्थल आई.एस. पेरेडाईज, सोडाला थाने के पास रखा गया है।
उदयपुर संभाग के अध्यक्ष ओम बंसल ने बताया कि संभाग के समस्त जिलों की पंचायतों के अलावा पंजीयन फार्म अग्रवाल धर्मशाला, हिरण मगरी से. ११ एवं अग्रवाल नमकीन, धानमंडी में उपलब्ध कराये गये है।

धूमधाम से मनेगी महाराजा अग्रसेन जयंती .
युगदृष्टा महाराजा अग्रसेन का जन्म लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व प्रताप नगर के राजा वल्लभ के यहां सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल में हुआ माना जाता है । आप बाल्यकाल से ही अत्यन्त दयालु, उदार तथा सहिष्णु प्रवृत्ति के थे । आपका विवाह नागराज महिधर की कन्या से स्वयंवर रीति से हुआ था । 35 वर्ष की आयु में अग्रोहा साम्राज्य की नींव डाली, आपके राज्य में अहिंसा का पालन, मानव समता, श्रम, पुरुषार्थ तथा समन्वय की भावना से सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः तथा समाज के अंतिम छोर के व्यक्ति को समाज की मुख्य धारा सो जोड़ना सर्वोपरि था ।

आपका जीवन त्याग, तपस्या एवं मर्यादापूर्ण रहा । आपने तत्कालीन यज्ञों में प्रचलित हिंसा का त्याग कर 18 महायज्ञों का आयोजन किया । माना जाता है कि यज्ञों में बैठे 18 गुरुओं के नाम पर ही अग्रवंश (अग्रवाल समाज) की स्थापना हुई ।

हिंसारहित समाज की अवधारणा के साथ-साथ आपने भातृत्व और मैत्री भाव को मानव कल्याण के लिए संस्थापित किया, जिससे समग्र समाज समुन्नत हो सके । अपने राज्य में एक ईंट एक मुद्रा का उद्घोष किया, जिसमें सक्षम व्यक्ति सामाजिक दायित्व के तहत अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को सहयोग करे । मानव कल्याण की आपकी अंतर्निहित विचारधारा ने समतामूलक समाज का बीजारोपण कर परस्पर सहयोग से समाजवादी व्यवस्था विकसित की ।

आपके अग्र राज्य की नीति जियो और जीने दो मानवता का महान संदेश है । आपने निज स्वार्थ का परित्याग कर परमार्थ का रास्ता अपनाया और कृषक जीवन की प्रतिष्ठा, श्रम की महिमा, शोषणविहीन समाज, पशुबलि विरोध, ऊंच-नीच के भेदभाव का उन्मूलन, नारी चेतना, अनेकता में एकता आदि मूल्यों को समाज में प्रतिष्ठित किया ।
आप मानव-मात्र के उत्थान के साधक थे और परस्पर सहयोग द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को मानव कल्याण के लिए, दायित्व निर्वहन हेतु पथ-प्रदर्शन तथा आह्वान करते रहे । छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में सामाजिक समरसता के क्षेत्र में स्तुत्य कार्यो के लिए महाराजा अग्रसेन सम्मान स्थापित किया है ।
धूमधाम से मनेगी महाराजा अग्रसेन जयंती
Aug 29, 12:09 am
करनाल, जागरण संवाद केंद्र
अग्रवाल युवा संगठन ने बैठक कर पांच अक्टूबर को को सिरसा में महाराज अग्रसेन की मनाई जाने वाली जयंती को सफल बनाने विचार-विमर्श किया। बैठक की अध्यक्षता संगठन के प्रधान रमेश जिंदल ने की।
रमेश जिंदल ने बताया कि महाराजा अग्रसेन की जयंती पर मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा एवं कानफेड के चेयरमैन बजरंग दास गर्ग होंगे। 14 अक्टूबर को 27वां पूर्णिमा मेला बड़े उल्लास के साथ मनाया जाएगा। इसमें देश-विदेश के गणमान्य व्यक्ति अग्रोहा में एकत्रित होंगे। इस मौके पर श्री हनुमान जी की 90 फीट की प्रतिमा, श्री लक्ष्मी जी का भव्य मंदिर, गुफा श्री वैष्णो देवी, श्री अमरनाथ जी, मंदिर श्री तिरुपति बाला जी, श्रीराम व श्रीकृष्ण की इलेक्ट्रानिक झांकियां शामिल की जाएंगी।
उन्होंने बैठक में मौजूद सभी पदाधिकारियों से इस कार्यक्रम को सफल बनाने तथा अधिक से अधिक संख्या में भाग लेने का आह्वान किया। बैठक में भूषण गोयल, प्रदीप अग्रवाल, राजन गर्ग, विनय सिंगला, कुलदीप गुप्ता, अरविंद गोयल, प्रदीप गर्ग, अरुण अग्रवाल, अजय सिंगला, मोहन लाल अग्रवाल, धीरज जैन व भारत मोदी मौजूद रहे।